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10th hindi

हिंदी गद्य का इतिहास -
     हिंदी गद्य का स्वरुप-
     गद्य हमारे दैनिक जीवन की भाषा है। गद्य की विषय वस्तु हमारी बोध वृत्ति पर  होती है। गद्य मष्तिष्क के तर्क प्रधान चिंतन  की उपज है। यह व्याहारिक होता है। गद्य कवियो की कसौटी कही  गई है। इसमें अपने भावों,विचारों को  व्यक्त करना सरल होता हैक्योंकि यह लय ताल, तुक और छंद से मुक्त रहता है।
    हिंदी गद्य साहित्य का विकास-
आधुनिक हिंदी गद्य को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है

  1. भारतेन्दु युग- 1868 से 1900 ई ० 
  2. द्विवेदी युग-1900 से 1920 ई०  
  3. शुक्ल युग- 1920 से 1936 ई० 
  4. शुक्लोत्तर युग- 1936 से 1947 ई० 
  5. स्वांत्र्योत्तर युग- 1947 से अब तक 
भारतेन्दु युग- भारतेन्दु जी को गद्य के जनक के रूप में जाना जाता है। भारतेन्दु जी ने संस्कृत, प्रचलित विदेशी शब्दों, तद्भव एवं देशज शब्दों का प्रयोग किया।   भारतेन्दु जी की प्रेरणा से ही इतिहास, भूगोल, धर्म,पुराण,उपन्यास,नाटक,निबंध आदि को लिखने के लिए लेखक प्रवृत्त हुए। 
पत्रिका- कवी वचन सुधा, हिंदी प्रदीप, ब्राह्मण(भारतेन्दु हरिश्चंद्र), आनंद कादंबरी(बद्रीनारायण चौधरी)
प्रमुख लेखक- श्रीनिवास, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, राधाकृष्ण दास, कार्तिकप्रसाद खत्री, राधाचरण गोस्वामी, बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
द्विवेदी युग- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने द्विवेदी युग का आरम्भ किया। इस युग में भाषा का परिमार्जन हुआ इस काल में उपयोगी एवं ललित साहित्य की रचना हुई।
प्रमुख लेखक- मुंशी प्रेमचंद्र, जयशंकर प्रसाद, बालमुकुंद गुप्त, पद्मसिंह शर्मा, श्यामसुंदर दास, रामचंद्र शुक्ल
पत्रिका- सरस्वती  ( महावीर प्रसाद द्विवेदी)