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Class 12th जीव विज्ञान (जीवों में जनन )

जीवों में जनन -
      प्रत्येक जीव इस पृथ्वी पर एक निश्चित अवधि के लिए जीवित रहता है इसके पश्चात् उनकी मृत्यु हो जाती है।  इससे उस जीव का स्तीत्व पृथ्वी से समाप्त न हो जाये , प्रत्येक जीव अपने समान संतान उत्पन्न करता है इससे उस जीव की संतति पृथ्वी पर विद्यमान रहती है। इसी प्रक्रिया को जनन कहा जाता है।
जनन दो प्रकार का होता है
अलैंगिक जनन -
     जनन की इस विधि में एकल जिव ही जनन करने की क्षमता रखता है।  इसके फलस्वरूप जो जीव उत्पन्न होता है वह अपने जनक के पूर्णतया समान होता है।  ये केवल एक दूसरे के समरूप  ही नहीं बल्कि अनुवांशिक रूप से भी एक दूसरे के समान होते है।  इन्हे क्लोन भी कहा जाता है।
    अलैंगिक जनन मुख्य  रूप से एक कोशिकीय जीवों एवं पौधों में होता है
 एक कोशिकीय जीवो में अलैंगिक जनन -
     प्रॉटिस्टा एवं मोनेरा संघ के जीवों में कोशिका विभाजन द्वारा जनन होता है।  इसमें  केन्द्रक दो भागों में विभाजित होता है इसके पश्चात् कोशिका दो भागों में विभक्त हो जाती है और प्रत्येक भाग एक वयस्क जिव के रूप में विकसित हो जाता है।
     यीस्ट में यह विभाजन एक सामान नहीं होता उसमे अनेक छोटी- छोटी कलिकाएं उत्पन्न हो जाती है और जनक कोशिका से जुडी होती है और  बाद में  होकर नए जिव के रूप में परिपक्व हो जाते हैं।
     विपरीत परिस्थितियों में अमीबा अपने चारो और एक कड़ा खोल बना लेता है जिसे पुती (Cyst) कहते हैं तथा अनुकूल परिस्थिति आने पर अमीबा अनेक spores  में  विभक्त हो जाता है  और अनेक वीजाणु  अमीबा विकसित हो जाते हैं।  इस जनन प्रक्रिया को विजाणुजनन कहा जाता है।
 अमीबा में द्विविखण्डन , यीस्ट में कलिकायन , क्लेमाइडोमोनस में विजाणु जनन 

   अनेक साधारण जीवों एवं पौधों में अलैंगिक जनन से आशय कायिक जनन से है।  हाइड्रा  में जनक हाइड्रा में कलिका के समान रचना उत्पन्न  होती है जो  बाद में अलग हो कर  हाइड्रा  को जन्म देता है।इस क्रिया को पुनरुद्ध्भवन कहते हैं। पौधों के विभिन्न भाग जैसे कन्द , प्रकंद , तने, पत्तियां, पर्व इत्यादि नए पौधे को उत्पन्न करने में सक्षम होते है।  इस प्रक्रिया को प्रवर्धन कहते हैं।
हाइड्रा में पुनरुदभवन